यह पुस्तक कोई कहानी संग्रह नहीं, न ही कोई काल्पनिक अथवा अवास्तविक गाथा है। यह पुस्तक पहलुओं और अनुभवों को उजागर करती है। अतः इस पुस्तक को किसी एक विधा का नहीं कहा जा सकता। आत्म-सुधार, आत्म-नवीनीकरण, स्वावलम्बन, सकारात्मकता आध्यात्मिकता, सांसारिक विवेक, आत्म-सम्मान और जीवन की कठिनाईयों पर विजय का वार्तालाप के माध्यम से बहुत ही प्रभावशाली चित्रण है। यह पुस्तक हर उम्र के पाठक के दिल को छूती है, भाती है। कोविड के अभूतपूर्व परिप्रेक्ष्य मे रचित यह पुस्तक आपदा की परिस्थिति को स्वीकारने और उन पर सफलता पूर्वक विजय पाने की गाथा है। उम्मीद और प्रेरणा से परिपूर्ण एक युवा दम्पती के आपसी वार्तालाप के माध्यम से और आस्था का अद्भुभुत सृजन इस पुस्तक की विशेषता है। यह पुस्तक आनंद से भरपूर जीवन की एक सफल यात्रा है।
नवलजी सहाय एक सेवानिवृत्त बैंकर हैं जिन्होंने वित्तीय क्षेत्र में 40 वर्ष से अधिक समय का अपना योगदान दिया। वे भारतीय स्टेट बैंक में विभिन्न पदों और भूमिका में कार्यरत रहे और अपने सेवाकाल में उन्होंने बिहार, झारखंड, एनसीआर के अतिरिक्त कनाडा में भी विभिन्न उत्तरदायित्वों का सफलतापूर्वक निर्वाह किया। एक सफल और समर्पित वित्तीय प्रोफेशनल होने के बावजूद उनका लगाव हमेशा ही सृजनात्मक चिंतन और लेखन की ओर रहा, जिसका मूल कारण था उनकी शिक्षा की पृष्ठभूमि। उन्होंने अंग्रेजी साहित्य में एमए किया है। इस पुस्तक के लिखने के पीछे लम्बे अरसे से उनके दिल में बसी इच्छा थी कि वे लोगों और समाज से जुड़े किसी महवपूर्ण विषय पर कुछ लिखें। कोविड-19 की परिस्थिति में उन्हें न केवल वांछित विषय-वस्तु मिली बल्कि यह पुस्तक लिखने की प्रबल प्रेरणा भी।
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